रात तारीक रास्ते ख़ामोश
मंज़िलों तक हैं क़ुमक़ुमे ख़ामोश
आरज़ूओं के ढे गए अहराम
हसरतों के हैं मक़बरे ख़ामोश
दिल के उजड़े नगर से गुज़रे हैं
कितनी यादों के क़ाफ़िले ख़ामोश
मुंतज़िर थे जो मेरी आमद के
हैं मुंडेरों पे वो दिए ख़ामोश
मेरे मुस्तक़बिल-ए-मोहब्बत पर
ज़िंदगी के हैं तजरिबे ख़ामोश
ज़ेहन-ए-आज़र है ख़्वाब-गाह-ए-जुमूद
फ़िक्र-ओ-फ़न के हैं बुत-कदे ख़ामोश
ग़ज़ल
रात तारीक रास्ते ख़ामोश
इक़बाल माहिर