रात के बा'द नए दिन की सहर आएगी
दिन नहीं बदलेगा तारीख़ बदल जाएगी
हँसते हँसते कभी थक जाओ तो छुप के रो लो
ये हँसी भीग के कुछ और चमक जाएगी
जगमगाती हुई सड़कों पे अकेले न फिरो
शाम आएगी किसी मोड़ पे डस जाएगी
और कुछ देर यूँही जंग सियासत मज़हब
और थक जाओ अभी नींद कहाँ आएगी
मेरी ग़ुर्बत को शराफ़त का अभी नाम न दे
वक़्त बदला तो तिरी राय बदल जाएगी
वक़्त नदियों को उछाले कि उड़ाए पर्बत
उम्र का काम गुज़रना है गुज़र जाएगी
ग़ज़ल
रात के बा'द नए दिन की सहर आएगी
निदा फ़ाज़ली