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रात गुज़री न कम सितारे हुए | शाही शायरी
raat guzri na kam sitare hue

ग़ज़ल

रात गुज़री न कम सितारे हुए

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

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रात गुज़री न कम सितारे हुए
मुन्कशिफ़ हम पे हिज्र सारे हुए

नाव दो-लख़्त हो गई इक दिन
दो मुसाफ़िर थे दो किनारे हुए

फूल दलदल में खिल रहा है यहाँ
हम हैं इक जिस्म पर उतारे हुए

जाने किस वक़्त नींद आई हमें
जाने किस वक़्त हम तुम्हारे हुए

मुद्दतों ब'अद काम आए हैं
चंद लम्हे कहीं गुज़ारे हुए

अपनी छत पर उदास बैठे हैं
हम परिंदों का रूप धारे हुए