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रात चौपाल और अलाव मियाँ | शाही शायरी
raat chaupal aur alaw miyan

ग़ज़ल

रात चौपाल और अलाव मियाँ

यूसुफ़ तक़ी

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रात चौपाल और अलाव मियाँ
अब कहाँ गाँव का सुभाव मियाँ

शेर कहना तो ख़ैर मुश्किल है
शेर पढ़ना ही सीख जाओ मियाँ

दर्स-ओ-तदरीस जब कि मंसब है
कुछ पढ़ो और कुछ पढ़ाओ मियाँ

ये जो फैली तो तुम भी झुलसोगे
आग का खेल मत रचाओ मियाँ

ये सफ़र दर्द का है रस्ते में
कैसा रुकना कहाँ पड़ाव मियाँ