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रास्ते हम से राज़ कहने लगे | शाही शायरी
raste humse raaz kahne lage

ग़ज़ल

रास्ते हम से राज़ कहने लगे

फ़रहत एहसास

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रास्ते हम से राज़ कहने लगे
फिर तो हम रास्तों में रहने लगे

मेरे लफ़्ज़ों को मिल गई आँखें
सारे आँसू लबों से बहने लगे

शहर के लफ़्ज़ कर दिए वापस
अपनी ज़ात अपनी बात कहने लगे

हम अभी ठीक से बने भी न थे
ख़ुद से टकराए और ढहने लगे

उस ने तल्क़ीन-ए-सब्र की थी सो हम
जो न सहना था वो भी सहने लगे

हम ने मिट्टी की बेड़ियाँ काटीं
तोड़ा ज़िंदान-ए-आब बहने लगे

मुज़्दा ऐ सकिनान-ए-शहर-ए-सुख़न
'फ़रहत-एहसास' शे'र कहने लगे