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रास आया है मुझे वहशत में मर जाना मिरा | शाही शायरी
ras aaya hai mujhe wahshat mein mar jaana mera

ग़ज़ल

रास आया है मुझे वहशत में मर जाना मिरा

रसा रामपुरी

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रास आया है मुझे वहशत में मर जाना मिरा
वो मुझे रोए ये कह कर हाए दीवाना मिरा

ग़ैर को साक़ी ने जब भर कर दिया जाम-ए-शराब
आँसुओं से हो गया लबरेज़ पैमाना मिरा

मेरे रोने पर वो उन का मुस्कुराना बार बार
और बलाएँ ले के वो क़दमों पे गिर जाना मिरा

हज़रत-ए-नासेह की बातें मैं समझता ही नहीं
ना समझ हैं दिल-लगी समझे हैं समझाना मिरा

ऐ 'रसा' वो भी शरीक-ए-महफ़िल-ए-मातम हुए
ख़िज़र भी मरते हैं जिस पर वो है मर जाना मिरा