राह पुर-ख़ार है क्या होना है
पाँव अफ़गार है क्या होना है
काम ज़िंदाँ के किए और हमें
शौक़-ए-गुलज़ार है क्या होना है
जान हलकान हुई जाती है
बार सा बार है क्या होना है
पार जाना है नहीं मिलती नाव
ज़ोर पर धार है क्या होना है
रौशनी की हमें आदत और घर
तीरा-ओ-तार है क्या होना है
बीच में आग का दरिया हाएल
क़स्द उस पार है क्या होना है
साथ वालों ने यहीं छोड़ दिया
बे-कसी यार है क्या होना है
आख़िरी दीद है आओ मिल लें
रंज बे-कार है क्या होना है
दिल हमें तुम से लगाना ही न था
अब सफ़र बार है क्या होना है
क्यूँ 'रज़ा' कुढ़ते हो हँसते उट्ठो
जब वो ग़फ़्फ़ार है क्या होना है
ग़ज़ल
राह पुर-ख़ार है क्या होना है
अख़तर इमाम रिज़वी