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राएगाँ औक़ात खो कर हैफ़ खाना है अबस | शाही शायरी
raegan auqat kho kar haif khana hai abas

ग़ज़ल

राएगाँ औक़ात खो कर हैफ़ खाना है अबस

वलीउल्लाह मुहिब

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राएगाँ औक़ात खो कर हैफ़ खाना है अबस
ख़ूब-रूयों से जहाँ के दिल लगाना है अबस

कारगर होगा तिरा अफ़्सूँ ये बावर है तुझे
उस परी पर ऐ दिल-ए-वहशी दिवाना है अबस

जीते फिर आने की पहले रख तवक़्क़ो' दिल से दूर
वर्ना कूचे में सितम-गारों के जाना है अबस

ख़ाक हो कर एक सूरत है गदा-ओ-शाह की
गर मुआफ़िक़ तुझ से ऐ मुनइ'म ज़माना है अबस

याद किस को रहम जी में कब दिमाग़-ओ-दिल कहाँ
याँ न आने का मिरे साहब बहाना है अबस

दिल-शिकन है सुब्ह-दम तेरा ही गुलचीं बाग़ में
आशियाँ ऐ अंदलीब उस जा बनाना है अबस

ऐ गुल-ए-ख़ंदाँ सबात-ए-उम्र है शबनम से कम
याँ बहार-ए-रंग पर हँसना हँसाना है अबस

वाँ फिरे हैं तरकश-ए-मिज़्गाँ तलाश-ए-सैद पर
याँ तिरा दिल तीर-ए-हसरत का निशाना है अबस

आबरू कहते हैं जिस को है 'मुहिब' इक क़तरा आब
जब ढलक जावे तो फिर उस का उठाना है अबस