राएगाँ औक़ात खो कर हैफ़ खाना है अबस
ख़ूब-रूयों से जहाँ के दिल लगाना है अबस
कारगर होगा तिरा अफ़्सूँ ये बावर है तुझे
उस परी पर ऐ दिल-ए-वहशी दिवाना है अबस
जीते फिर आने की पहले रख तवक़्क़ो' दिल से दूर
वर्ना कूचे में सितम-गारों के जाना है अबस
ख़ाक हो कर एक सूरत है गदा-ओ-शाह की
गर मुआफ़िक़ तुझ से ऐ मुनइ'म ज़माना है अबस
याद किस को रहम जी में कब दिमाग़-ओ-दिल कहाँ
याँ न आने का मिरे साहब बहाना है अबस
दिल-शिकन है सुब्ह-दम तेरा ही गुलचीं बाग़ में
आशियाँ ऐ अंदलीब उस जा बनाना है अबस
ऐ गुल-ए-ख़ंदाँ सबात-ए-उम्र है शबनम से कम
याँ बहार-ए-रंग पर हँसना हँसाना है अबस
वाँ फिरे हैं तरकश-ए-मिज़्गाँ तलाश-ए-सैद पर
याँ तिरा दिल तीर-ए-हसरत का निशाना है अबस
आबरू कहते हैं जिस को है 'मुहिब' इक क़तरा आब
जब ढलक जावे तो फिर उस का उठाना है अबस

ग़ज़ल
राएगाँ औक़ात खो कर हैफ़ खाना है अबस
वलीउल्लाह मुहिब