क़यास बन-बास को मुआ'नी दे
दे मुझे फिर कोई कहानी दे
बख़्श जज़्बों को दाइमी शोभा
शेर को उम्र-ए-जावेदानी दे
कर्बला! मेरी जद्द पे गुज़री किया
हाल-अहवाल कुछ ज़बानी दे
ख़ातम-ए-ज़र कि आँसुओं के गुहर
जो भी देता है तू निशानी दे
डाल गंदुम पे केसरी चुन्द्री
धान के सर पे शाल धानी दे
कोई एजाज़-ए-महरमाना फिर
कोई आवाज़ तो पुरानी दे
मंतक़े सब ज़मीं के कर ज़रख़ेज़
रंग धरती को आसमानी दे
कौन पैदा हो या-अली तुझ सा
अपने क़ातिल को कौन पानी दे
इक न इक दिन तो प्रियत्मा से मिला
इक न इक रात तो सुहानी दे
हाथ को हिर्स की हवा से बचा
आँख को दिल की तर्जुमानी दे
राजा चौपट अंधेर-नगरी का
इस कहानी को मत रवानी दे
ग़ज़ल
क़यास बन-बास को मुआ'नी दे
नासिर शहज़ाद