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क़यास बन-बास को मुआ'नी दे | शाही शायरी
qayas ban-bas ko muani de

ग़ज़ल

क़यास बन-बास को मुआ'नी दे

नासिर शहज़ाद

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क़यास बन-बास को मुआ'नी दे
दे मुझे फिर कोई कहानी दे

बख़्श जज़्बों को दाइमी शोभा
शेर को उम्र-ए-जावेदानी दे

कर्बला! मेरी जद्द पे गुज़री किया
हाल-अहवाल कुछ ज़बानी दे

ख़ातम-ए-ज़र कि आँसुओं के गुहर
जो भी देता है तू निशानी दे

डाल गंदुम पे केसरी चुन्द्री
धान के सर पे शाल धानी दे

कोई एजाज़-ए-महरमाना फिर
कोई आवाज़ तो पुरानी दे

मंतक़े सब ज़मीं के कर ज़रख़ेज़
रंग धरती को आसमानी दे

कौन पैदा हो या-अली तुझ सा
अपने क़ातिल को कौन पानी दे

इक न इक दिन तो प्रियत्मा से मिला
इक न इक रात तो सुहानी दे

हाथ को हिर्स की हवा से बचा
आँख को दिल की तर्जुमानी दे

राजा चौपट अंधेर-नगरी का
इस कहानी को मत रवानी दे