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क़यामत है शब-ए-वादा का इतना मुख़्तसर होना | शाही शायरी
qayamat hai shab-e-wada ka itna muKHtasar hona

ग़ज़ल

क़यामत है शब-ए-वादा का इतना मुख़्तसर होना

यगाना चंगेज़ी

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क़यामत है शब-ए-वादा का इतना मुख़्तसर होना
फ़लक का शाम से दस्त-ओ-गरेबान-ए-सहर होना

शब-ए-तारीक ने पहलू दबाया रोज़-ए-रौशन का
ज़हे क़िस्मत मिरे बालीं पे तेरा जल्वागर होना

हवा-ए-तुंद से कब तक लड़ेगा शोला-ए-सरकश
अबस है ख़ुद-नुमाई की हवस में जल्वागर होना

दियार-ए-बे-ख़ुदी है अपने हक़ में गोशा-ए-राहत
ग़नीमत है घड़ी भर ख़्वाब-ए-ग़फ़लत में बसर होना

वही साक़ी वही साग़र वही शीशा वही बादा
मगर लाज़िम नहीं हर एक पर यकसाँ असर होना

सुना करते थे आज आँखों से देखें देखने वाले
निगाह-ए-'यास' का संगीं-दिलों पर कारगर होना