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क़तरा दरिया-ए-आश्नाई है | शाही शायरी
qatra dariya-e-ashnai hai

ग़ज़ल

क़तरा दरिया-ए-आश्नाई है

फ़ानी बदायुनी

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क़तरा दरिया-ए-आश्नाई है
क्या तिरी शान-ए-किब्रियाई है

तेरी मर्ज़ी जो देख पाई है
ख़लिश-ए-दर्द की बन आई है

वहम को भी तिरा निशाँ न मिला
ना-रसाई सी ना-रसाई है

कौन दिल है जो दर्दमंद नहीं
क्या तिरे दर्द की ख़ुदाई है

जल्वा-ए-यार का भिकारी हूँ
शश-जिहत कासा-ए-गदाई है

मौत आती है तुम न आओगे
तुम न आए तो मौत आई है

बिछ गए राह-ए-यार में काँटे
किस को उज़्र-ए-बरहना-पाई है

तर्क-ए-उम्मीद बस की बात नहीं
वर्ना उम्मीद कब बर आई है

मुज़्दा-ए-जन्नत-ए-विसाल है मौत
ज़िंदगी महशर-ए-जुदाई है

आरज़ू फिर है दर-पा-ए-तदबीर
सई-ए-नाकाम की दुहाई है

मौत ही साथ दे तो दे 'फ़ानी'
उम्र को उज़्र-ए-बेवफ़ाई है