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क़रीब मौत खड़ी है ज़रा ठहर जाओ | शाही शायरी
qarib maut khaDi hai zara Thahar jao

ग़ज़ल

क़रीब मौत खड़ी है ज़रा ठहर जाओ

सैफ़ुद्दीन सैफ़

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क़रीब मौत खड़ी है ज़रा ठहर जाओ
क़ज़ा से आँख लड़ी है ज़रा ठहर जाओ

थकी थकी सी फ़ज़ाएँ बुझे बुझे तारे
बड़ी उदास घड़ी है ज़रा ठहर जाओ

नहीं उमीद कि हम आज की सहर देखें
ये रात हम पे कड़ी है ज़रा ठहर जाओ

अभी न जाओ कि तारों का दिल धड़कता है
तमाम रात पड़ी है ज़रा ठहर जाओ

फिर इस के बा'द कभी हम न तुम को रोकेंगे
लबों पे साँस अड़ी है ज़रा ठहर जाओ

दम-ए-फ़िराक़ मैं जी भर के तुम को देख तो लूँ
ये फ़ैसले की घड़ी है ज़रा ठहर जाओ