क़रार दिल को सदा जिस के नाम से आया
वो आया भी तो किसी और काम से आया
किसी ने पूछा नहीं लौटते हुए मुझ से
मैं आज कैसे भला घर में शाम से आया
हम ऐसे बे-हुनरों में है जो सलीक़ा-ए-ज़ीस्त
तिरे दयार में पल-भर क़याम से आया
जो आसमाँ की बुलंदी को छूने वाला था
वही मिनारा ज़मीं पर धड़ाम से आया
मैं ख़ाली हाथ ही जा पहुँचा उस की महफ़िल में
मिरा रक़ीब बड़े इंतिज़ाम से आया
ग़ज़ल
क़रार दिल को सदा जिस के नाम से आया
जमाल एहसानी