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क़फ़स में हों कि ताइर आशियाँ में | शाही शायरी
qafas mein hon ki tair aashiyan mein

ग़ज़ल

क़फ़स में हों कि ताइर आशियाँ में

जलील मानिकपूरी

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क़फ़स में हों कि ताइर आशियाँ में
तिरा करते हैं ज़िक्र अपनी ज़बाँ में

चमन यूँ ही रहेगा नज़र-ए-सरसर
है इक तिनका भी जब तक आशियाँ में

हुजूम-ए-अश्क में मिलता नहीं दिल
मिरा यूसुफ़ है गुम इस कारवाँ में

मुज़क्कर और मोअन्नस की हैं बहसें
बड़ा झगड़ा है ये उर्दू ज़बाँ में

'जलील' इस बाग़ में काँटे की सूरत
खटकता है निगाह-ए-बाग़बाँ में