क़ासिद-ए-मस्त-गाम मौज-ए-सबा
कोई रम्ज़-ए-ख़िराम मौज-ए-सबा
वादी-ए-बर्फ़ का कोई सन्देस
मेरे अश्कों के नाम मौज-ए-सबा
कोई मौज-ए-ख़याल में बहती
मंज़िलों का पयाम मौज-ए-सबा
सो सिमटती मसाफ़तों का तिलिस्म
तेरी करवट का नाम मौज-ए-सबा
तेरे दामन की ख़ुशबुओं में हैं ग़म
सौ सुहाने मक़ाम मौज-ए-सबा
आती पतझड़ के साथ लौटते वक़्त
इक बहारें पयाम मौज-ए-सबा
इक नवेद-ए-निगाह-ए-पैक-ए-हबीब
इक जवाब-ए-सलाम मौज-ए-सबा
ग़ज़ल
क़ासिद-ए-मस्त-गाम मौज-ए-सबा
मजीद अमजद

