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क़ासिद-ए-मस्त-गाम मौज-ए-सबा | शाही शायरी
qasid-e-mast-gam mauj-e-saba

ग़ज़ल

क़ासिद-ए-मस्त-गाम मौज-ए-सबा

मजीद अमजद

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क़ासिद-ए-मस्त-गाम मौज-ए-सबा
कोई रम्ज़-ए-ख़िराम मौज-ए-सबा

वादी-ए-बर्फ़ का कोई सन्देस
मेरे अश्कों के नाम मौज-ए-सबा

कोई मौज-ए-ख़याल में बहती
मंज़िलों का पयाम मौज-ए-सबा

सो सिमटती मसाफ़तों का तिलिस्म
तेरी करवट का नाम मौज-ए-सबा

तेरे दामन की ख़ुशबुओं में हैं ग़म
सौ सुहाने मक़ाम मौज-ए-सबा

आती पतझड़ के साथ लौटते वक़्त
इक बहारें पयाम मौज-ए-सबा

इक नवेद-ए-निगाह-ए-पैक-ए-हबीब
इक जवाब-ए-सलाम मौज-ए-सबा