प्यारी के नैनाँ हैं जैसे कटारे 
न सम उस के अंगे कोई हैं दो धारे 
असर तुज मोहब्बत का जिस कूँ चड़ेगा 
तिरे लाल बिन उस कूँ कोई न उतारे 
दो लोचन हैं तेरे निसंग चोर रावत 
ओ नो सूँ दिलेरी न कर सब ही हारे 
सुहाता है तुज कूँ गुमाँ होर ग़रूरी 
कि माते अहें तुज हुस्न के प्यारे 
सकियाँ में तू है मिर्ग-नैनी छबेली 
सजन तू नहीं होते तुज थे किनारे 
अजब चपख़लाई है तेरी नयन में 
कि खंजन नमन एक तिल कईं न ठारे 
नबी सदक़े 'क़ुतबा' सूँ मद पीवे जम-जम 
वो चंद मुख कि जिस मुख थे जूती सिंगारे
        ग़ज़ल
प्यारी के नैनाँ हैं जैसे कटारे
क़ुली क़ुतुब शाह

