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प्यार का कारोबार करता हूँ | शाही शायरी
pyar ka karobar karta hun

ग़ज़ल

प्यार का कारोबार करता हूँ

माहिर बलगिरामी

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प्यार का कारोबार करता हूँ
सब को दुनिया में प्यार करता हूँ

ख़ुद पे मैं ए'तिबार करता हूँ
प्यार करता था प्यार करता हूँ

आह बे-इख़्तियार करता हूँ
याद जब उस का प्यार करता हूँ

मुझ को नफ़रत से सख़्त नफ़रत है
प्यार को दिल से प्यार करता हूँ

मौत का इंतिज़ार क्या मा'नी
ज़िंदगानी से प्यार करता हूँ

सब्ज़ा-ओ-ख़ार-ओ-गुल सभी हैं अज़ीज़
सारे गुलशन को प्यार करता हूँ

दोस्त कर लेता हूँ अदू को भी
दुश्मनों को भी प्यार करता हूँ

मुझ को क्या हो किसी का कुछ मस्लक
मैं शिआ'र अपना प्यार करता हूँ

मुझ को संगीं बुतों से उल्फ़त है
पत्थरों को मैं प्यार करता हूँ

बच के चलना सिखाया काँटों ने
इस में मैं उन को प्यार करता हूँ

उम्र दुख दर्द में कटी अपनी
इस लिए ग़म से प्यार करता हूँ

लूट ले दिल जो आँख मलते ही
ऐसे रहज़न को प्यार करता हूँ

उन को आता है जिस क़दर ग़ुस्सा
उतना ही और प्यार करता हूँ

मुझ में रच बस गया है प्यार ऐसा
सब को दुनिया में प्यार करता हूँ

रोज़-ए-अव्वल से आज तक 'माहिर'
उस को नादीदा प्यार करता हूँ