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पुर-ख़ूँ है जिगर लाला-ए-सैराब की सौगंद | शाही शायरी
pur-KHun hai jigar lala-e-sairab ki saugand

ग़ज़ल

पुर-ख़ूँ है जिगर लाला-ए-सैराब की सौगंद

सिराज औरंगाबादी

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पुर-ख़ूँ है जिगर लाला-ए-सैराब की सौगंद
रंगीनी-ए-दाग़-ए-दिल-ए-बेताब की सौगंद

तस्वीर है तुझ याद सीं आईना-ए-दिल आज
हैरत-वशी-ए-दीदा-ए-बे-ख़्वाब की सौगंद

है काबा-ए-मक़्सूद मुझे वो ख़म-ए-अबरू
ऐ शोख़ मुझे मस्जिद ओ मेहराब की सौगंद

सरसब्ज़ है आँसू सीं मिरा गुलशन-ए-उम्मीद
है मुझ कूँ मिरे दीदा-ए-पुर-आब की सौगंद

अहवाल-ए-'सिराज' आ कि बिरह आग में तूँ देख
बे-ताक़त ओ बे-ताब है सीमाब की सौगंद