पुर-ख़ूँ है जिगर लाला-ए-सैराब की सौगंद
रंगीनी-ए-दाग़-ए-दिल-ए-बेताब की सौगंद
तस्वीर है तुझ याद सीं आईना-ए-दिल आज
हैरत-वशी-ए-दीदा-ए-बे-ख़्वाब की सौगंद
है काबा-ए-मक़्सूद मुझे वो ख़म-ए-अबरू
ऐ शोख़ मुझे मस्जिद ओ मेहराब की सौगंद
सरसब्ज़ है आँसू सीं मिरा गुलशन-ए-उम्मीद
है मुझ कूँ मिरे दीदा-ए-पुर-आब की सौगंद
अहवाल-ए-'सिराज' आ कि बिरह आग में तूँ देख
बे-ताक़त ओ बे-ताब है सीमाब की सौगंद
ग़ज़ल
पुर-ख़ूँ है जिगर लाला-ए-सैराब की सौगंद
सिराज औरंगाबादी