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पोशीदा देखती है किसी की नज़र मुझे | शाही शायरी
poshida dekhti hai kisi ki nazar mujhe

ग़ज़ल

पोशीदा देखती है किसी की नज़र मुझे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

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पोशीदा देखती है किसी की नज़र मुझे
देख ऐ निगाह-ए-शौक़ तू रुस्वा न कर मुझे

मक़्सद से बे-नियाज़ रहा ज़ौक़-ए-जुस्तुजू
मैं बे-ख़बर हुआ जो हुई कुछ ख़बर मुझे

मैं शब की बज़्म-ए-ऐश का मातम-नशीं हूँ आप
रो रो के क्यूँ रुलाती है शम्अ-ए-सहर मुझे

हैरत ने मेरी आईना उन को बना दिया
क्या देखते कि रह गए वो देख कर मुझे

क़ुर्बान जाऊँ छोड़ तकल्लुफ़ की गुफ़्तुगू
कह कर पुकार 'वहशत'-ए-शोरीदा-सर मुझे