पीरी से मिरा नौ दिगर-हाल हुआ है
वो क़द जो अलिफ़ सा था सो अब दाल हुआ है
मक़्बूल मिरे क़ौल से क़व्वाल हुआ है
सूफ़ी को ग़ज़ल सुन के मिरी हाल हुआ है
उन हाथों की दौलत से कड़ा माल हुआ है
उन पाँव से आवाज़ा-ए-ख़लख़ाल हुआ है
अलमिन्नत ओ लिल्लाह ब-सद-मिन्नत उधर से
इंकार था जिस शय का अब इक़बाल हुआ है
जब क़त्ल किया है किसी आशिक़ को तो वाँ से
जल्लाद की तलवार को रूमाल हुआ है
किस उक़्दे को इस ज़ुल्फ़ की खोला नहीं हम ने
सुलझाया है उलझा हुआ जो बाल हुआ है
किस सर को नहीं यार की रफ़्तार का सौदा
मेराज वो समझा है जो पामाल हुआ है
बीमार रहा बरसों मैं ईसा-नफ़सों में
पूछा न किसी ने कभी क्या हाल हुआ है
ऐ अब्र-ए-करम तू ही सफ़ेद उस को करेगा
बरसों में सियह नामा-ए-आमाल हुआ है
जो नाज़ करे यार सज़ा-वार है 'आतिश'
ख़ुश-रू ओ ख़ुश-उस्लूब ओ ख़ुश-इक़बाल हुआ है
ग़ज़ल
पीरी से मिरा नौ दिगर-हाल हुआ है
हैदर अली आतिश