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पी हम ने बहुत शराब तौबा | शाही शायरी
pi humne bahut sharab tauba

ग़ज़ल

पी हम ने बहुत शराब तौबा

हफ़ीज़ जौनपुरी

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पी हम ने बहुत शराब तौबा
ऐ गर्मी-ए-आफ़्ताब तौबा

आलम का ये इंक़लाब तौबा
ज़र्रे हुए आफ़्ताब तौबा

जिस वक़्त तसल्लियाँ कोई दे
उस वक़्त का इज़्तिराब तौबा

आँखें जिन्हें देख कर हों बीमार
वो नर्गिस-ए-नीम-ख़्वाब तौबा

क्या मस्ताना हर अदा है
किस जोश पे है शबाब तौबा

कर दूँगा हज़ार मैं उन्हें बंद
बातों का मिरी जवाब तौबा

हर रोज़ ही इक नया सितम है
हर वक़्त है इक इताब तौबा

साक़ी तिरे दौर में किसी की
होती भी है मुस्तजाब तौबा

आँखें शब-ए-वस्ल भी झुकी हैं
ख़ल्वत में भी ये हिजाब तौबा

करता है शराब मोहतसिब बंद
ये भी है कोई सवाब तौबा

पीरी में 'हफ़ीज़' मय-परस्ती
अब कीजिए ऐ जनाब तौबा