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फूलों को शर्मसार किया है कभी कभी | शाही शायरी
phulon ko sharmsar kiya hai kabhi kabhi

ग़ज़ल

फूलों को शर्मसार किया है कभी कभी

सय्यद जहीरुद्दीन ज़हीर

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फूलों को शर्मसार किया है कभी कभी
काँटों से हम ने प्यार किया है कभी कभी

मौक़ूफ़ चाक-ए-जेब-ओ-गरेबाँ ही पर नहीं
दामन भी तार-तार किया है कभी कभी

मैं मुज़्तरिब रहा हूँ ये सच है फ़िराक़ में
उन को भी बे-क़रार किया है कभी कभी

दिल का दिया जला के ख़ुद अपने ही ख़ून से
शब शब-भर इंतिज़ार किया है कभी कभी

तन्हा शब-ए-फ़िराक़ में तार-ए-नफ़स के साथ
तारों का भी शुमार किया है कभी कभी

ऐसा भी वक़्त आया है अक्सर हयात में
सर अपना सू-ए-दार किया है कभी कभी

सय्याद मेरे ताइर-ए-दिल ने क़फ़स को भी
नालों से पुर-बहार किया है कभी कभी