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फूल पे धूल बबूल पे शबनम देखने वाले देखता जा | शाही शायरी
phul pe dhul babul pe shabnam dekhne wale dekhta ja

ग़ज़ल

फूल पे धूल बबूल पे शबनम देखने वाले देखता जा

क़तील शिफ़ाई

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फूल पे धूल बबूल पे शबनम देखने वाले देखता जा
अब है यही इंसाफ़ का आलम देखने वाले देखता जा

परवानों की राख उड़ा दी बाद-ए-सहर के झोंकों ने
शम्अ' बनी है पैकर-ए-मातम देखने वाले देखता जा

जाम-ब-जाम लगी हैं मोहरें मय-ख़ानों पर पहरे हैं
रोती है बरसात छमा-छम देखने वाले देखता जा

इस नगरी के राज-दुलारे एक तरह कब रहते हैं
ढलते साए बदलते मौसम देखने वाले देखता जा

मस्लहतों की धूल जमी है उखड़े उखड़े क़दमों पर
झिजक झिजक कर उड़ते परचम देखने वाले देखता जा

एक पुराना मदफ़न जिस में दफ़्न हैं लाखों उम्मीदें
छलनी छलनी सीना-ए-आदम देखने वाले देखता जा

एक तिरा ही दिल नहीं घायल दर्द के मारे और भी हैं
कुछ अपना कुछ दुनिया का ग़म देखने वाले देखता जा

कम-नज़रों की इस दुनिया में देर भी है अंधेर भी है
पथराया हर दीदा-ए-पुर-नम देखने वाले देखता जा