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फूल का खिलना बहुत दुश्वार है | शाही शायरी
phul ka khilna bahut dushwar hai

ग़ज़ल

फूल का खिलना बहुत दुश्वार है

ज़ुहैर कंजाही

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फूल का खिलना बहुत दुश्वार है
मौसम-ए-गुल आज-कल बीमार है

बे-वसीला बात बन सकती नहीं
मिल गई कश्ती तो दरिया पार है

आँसुओं का और मतलब कुछ नहीं
मुख़्तसर सी सूरत-ए-इज़हार है

दोस्ती का राज़ इफ़्शा कर गई
दुश्मनी भी इक बड़ा किरदार है

हम सफ़ीने के लिए इक बोझ हैं
हम अगर डूबे तो बेड़ा पार है

ज़िंदगी की रज़्म-गाहों में 'ज़ुहैर'
सरफ़रोशी आख़िरी त्यौहार है