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फिर वो गुम-गश्ता हवाले मुझे वापस कर दे | शाही शायरी
phir wo gum-gashta hawale mujhe wapas kar de

ग़ज़ल

फिर वो गुम-गश्ता हवाले मुझे वापस कर दे

ख़ुर्शीद रिज़वी

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फिर वो गुम-गश्ता हवाले मुझे वापस कर दे
वो शब ओ रोज़ वो रिश्ते मुझे वापस कर दे

आँख से दिल ने कहा रंग-ए-जहाँ शौक़ से देख
मेरे देखे हुए सपने मुझे वापस कर दे

में तुझे दूँ तिरी पानी की लिखी तहरीरें
तू वो ख़ूँ-नाब नविश्ते मुझे वापस कर दे

मैं शब ओ रोज़ का हासिल उसे लौटा दूँगा
वक़्त अगर मेरे खिलौने मुझे वापस कर दे

मुझ से ले ले सदफ़ ओ गौहर ओ मर्जां का हिसाब
और वो ग़र्क़ाब सफ़ीने मुझे वापस कर दे

नुस्ख़ा-ए-मरहम-ए-इक्सीर बताने वाले
तू मिरा ज़ख़्म तो पहले मुझे वापस कर दे

हाथ पर ख़ाका-ए-तक़दीर बनाने वाले
यूँ तही-दस्त न दर से मुझे वापस कर दे

आसमाँ सुब्ह के आसार से पहले पहले
मेरी क़िस्मत के सितारे मुझे वापस कर दे

मैं तिरी उम्र-ए-गुज़िश्ता की सदा हूँ 'ख़ुर्शीद'
अपने नाकाम इरादे मुझे वापस कर दे