फिर कोई जश्न मनाओ कि हँसी आ जाए
गीत इक ऐसा सुनाओ कि हँसी आ जाए
दम घुटा जाता है इस रात की तारीकी में
कोई बस्ती ही जलाओ कि हँसी आ जाए
तुम तो बे-लौस हो मुख़्लिस हो करम-फ़रमा हो
इतने नज़दीक न आओ कि हँसी आ जाए
काम करना है तो मैदान में आओ 'शौकत'
इस तरह बैठ न जाओ कि हँसी आ जाए
ग़ज़ल
फिर कोई जश्न मनाओ कि हँसी आ जाए
शौकत परदेसी