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फिर कोई जश्न मनाओ कि हँसी आ जाए | शाही शायरी
phir koi jashn manao ki hansi aa jae

ग़ज़ल

फिर कोई जश्न मनाओ कि हँसी आ जाए

शौकत परदेसी

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फिर कोई जश्न मनाओ कि हँसी आ जाए
गीत इक ऐसा सुनाओ कि हँसी आ जाए

दम घुटा जाता है इस रात की तारीकी में
कोई बस्ती ही जलाओ कि हँसी आ जाए

तुम तो बे-लौस हो मुख़्लिस हो करम-फ़रमा हो
इतने नज़दीक न आओ कि हँसी आ जाए

काम करना है तो मैदान में आओ 'शौकत'
इस तरह बैठ न जाओ कि हँसी आ जाए