फिर बढ़ा जोश-ए-जुनूँ सूरत-ए-सैलाब मुझे
फिर कहीं ग़र्क़ न कर दे कोई गिर्दाब मुझे
मैं वो हूँ आप जो हो अपनी तबाही का सबब
कर गई कसरत-ए-गिर्या मिरी ग़र्क़ाब मुझे
चश्म में अश्क ख़लिश दिल में जिगर में टीसें
उफ़ ये क्या चीज़ किया करती है बेताब मुझे
मेरी उम्मीद में है यास की सूरत मुज़्मर
मेरी हस्ती है फ़ना मिस्ल-ए-खत-ए-आब मुझे
नीची नज़रें हों ज़बाँ बंद हो ग़ैरों को सलाम
उन की महफ़िल के तो आएँगे न आदाब मुझे
सोज़-ए-फ़ुर्क़त तपिश-ए-ग़म के सबब मुद्दत से
ख़्वाब क्या आरज़ू-ए-ख़्वाब हुई ख़्वाब मुझे
शूमी-ए-बख़्त से तंग आ के जो दरिया में गिरा
मौज ने फेंक दिया ला के लब-ए-आब मुझे
कितना दिल-सोज़ है 'तालिब' तिरा अफ़्साना-ए-ग़म
वो तो वो ग़ैर नज़र आते हैं बेताब मुझे

ग़ज़ल
फिर बढ़ा जोश-ए-जुनूँ सूरत-ए-सैलाब मुझे
तालिब बाग़पती