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फल है उस बुत की आश्नाई का | शाही शायरी
phal hai us but ki aashnai ka

ग़ज़ल

फल है उस बुत की आश्नाई का

मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी

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फल है उस बुत की आश्नाई का
मुझ को दावा है अब ख़ुदाई का

न लड़ाओ नज़र रक़ीबों से
काम अच्छा नहीं लड़ाई का

आसमाँ पर नहीं हिलाल नुमूद
न'अल है तेरी ज़ेरपाई का

गुल में थी इस क़दर कहाँ सुर्ख़ी
अक्स है पंजा-ए-हिनाई का

किस सितमगर से तू ने ऐ काफ़िर
तर्ज़ सीखा है दिलरुबाई का

चादर-ए-आसमान हाज़िर हो
तू जो अस्तर करे रज़ाई का

वक़्त क्या आ गया है सद-अफ़्सोस
भाई दुश्मन हुआ है भाई का

गो बरहमन पिसर वो क़ातिल है
दिल मिला है मगर क़साई का

कुछ मिरा ही नहीं वो बुत माबूद
ब-ख़ुदा है ख़ुदा ख़ुदाई का

'सेहर' क्या उस ने कर दिया जादू
मुझ को दावा था पारसाई का