फैलता जाता है नफ़रत का धुआँ इश्क़ करो
बुझ न जाए कहीं ये शो'ला-ए-जाँ इश्क़ करो
इश्क़ बिन जीने के आदाब नहीं आते हैं
'मीर' साहब ने कहा है कि मियाँ इश्क़ करो
कज-अदाई न फ़क़ीरों को दिखाओ यारो
एक शब के लिए मेहमाँ हैं यहाँ इश्क़ करो
कल न हम होंगे न तुम होगे न ये हंगामे
कोई दिन और है ये रंग-ए-जहाँ इश्क़ करो
इश्क़ के सौदे में नुक़सान बहुत है 'वाली'
पर कभी बंद न हो दिल की दुकाँ इश्क़ करो

ग़ज़ल
फैलता जाता है नफ़रत का धुआँ इश्क़ करो
वाली आसी