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फैलता जाता है नफ़रत का धुआँ इश्क़ करो | शाही शायरी
phailta jata hai nafrat ka dhuan ishq karo

ग़ज़ल

फैलता जाता है नफ़रत का धुआँ इश्क़ करो

वाली आसी

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फैलता जाता है नफ़रत का धुआँ इश्क़ करो
बुझ न जाए कहीं ये शो'ला-ए-जाँ इश्क़ करो

इश्क़ बिन जीने के आदाब नहीं आते हैं
'मीर' साहब ने कहा है कि मियाँ इश्क़ करो

कज-अदाई न फ़क़ीरों को दिखाओ यारो
एक शब के लिए मेहमाँ हैं यहाँ इश्क़ करो

कल न हम होंगे न तुम होगे न ये हंगामे
कोई दिन और है ये रंग-ए-जहाँ इश्क़ करो

इश्क़ के सौदे में नुक़सान बहुत है 'वाली'
पर कभी बंद न हो दिल की दुकाँ इश्क़ करो