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पटरे धरे हैं सर पर दरिया के पाट वाले | शाही शायरी
paTre dhare hain sar par dariya ke paT wale

ग़ज़ल

पटरे धरे हैं सर पर दरिया के पाट वाले

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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पटरे धरे हैं सर पर दरिया के पाट वाले
आते हैं किस अदा से इस मुँह पे घाट वाले

चसका पड़ा है जब से शीरीं-लबों का उस के
कैसे लगे रहें हैं बोसे की चाट वाले

दरिया पे तू नहाने जाया न कर कि नादाँ
वाँ घात में हैं तेरी कई धोबी पाट वाले

कूचे में तेरे ज़ालिम अज़-बहर-ए-दाद-ख़्वाही
ये ज़ुल्म है तो लाखों आवेंगे घाट वाले

बाज़ार-ए-मिस्र में वो जिन जिन को छिल गया है
इक सोच में हैं बैठे अब तक वो हाट वाले

देखे न कोई उन को बा-दीदा-ए-हक़ारत
ख़ज़पोशों पर गिराँ हैं अलबत्ता टाट वाले

मैं ने रक़ीब को कल बातों में ख़ूब काटा
चूकें हैं 'मुसहफ़ी' कब हैं वो जो काट वाले