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पस्त-ओ-बुलंद में जो तुझे रिश्ता चाहिए | शाही शायरी
past-o-buland mein jo tujhe rishta chahiye

ग़ज़ल

पस्त-ओ-बुलंद में जो तुझे रिश्ता चाहिए

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

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पस्त-ओ-बुलंद में जो तुझे रिश्ता चाहिए
मिलने को तुझ से छत पे मुझे ज़ीना चाहिए

ये कौन आ गया है मिरे उस के दरमियाँ
दीवार है तो उस में मुझे रख़्ना चाहिए

तामीर के लिए मुझे दरकार एक उम्र
तख़रीब के लिए मुझे इक लम्हा चाहिए

यारों ने मेरी राह में दीवार खींच कर
मशहूर कर दिया कि मुझे साया चाहिए

मिलने का अब नहीं जो किसी भी दुकान में
हिन्दोस्तान का मुझे वो नक़्शा चाहिए