परेशानी है जी घबरा रहा है
कोई धीमे सुरों में गा रहा है
कहूँ क्या हाल-ए-नाकाम-ए-मोहब्बत
तमन्नाओं से जी बहला रहा है
कोई शब की ख़मोशी में है गिर्यां
तसव्वुर में कोई समझा रहा है
तसव्वुर की ये मक़्सद-आफ़रीनी
मैं समझा कोई सच-मुच आ रहा है
जो रस्ता ख़ुल्द में निकला है जा कर
वो दोज़ख़ से निकल कर जा रहा है
ग़ज़ल
परेशानी है जी घबरा रहा है
अफ़सर मेरठी