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पर्दा आँखों से हटाने में बहुत देर लगी | शाही शायरी
parda aankhon se haTane mein bahut der lagi

ग़ज़ल

पर्दा आँखों से हटाने में बहुत देर लगी

यासमीन हमीद

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पर्दा आँखों से हटाने में बहुत देर लगी
हमें दुनिया नज़र आने में बहुत देर लगी

नज़र आता है जो वैसा नहीं होता कोई शख़्स
ख़ुद को ये बात बताने में बहुत देर लगी

एक दीवार उठाई थी बड़ी उजलत में
वही दीवार गिराने में बहुत देर लगी

आग ही आग थी और लोग बहुत चारों तरफ़
अपना तो ध्यान ही आने में बहुत देर लगी

जिस तरह हम कभी होना ही नहीं चाहते थे
ख़ुद को फिर वैसा बनाने में बहुत देर लगी

ये हुआ तू कि हर इक शय की कशिश माँद पड़ी
मगर इस मोड़ पे आने में बहुत देर लगी