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पलकों पर हसरत की घटाएँ हम भी पागल तुम भी | शाही शायरी
palkon par hasrat ki ghaTaen hum bhi pagal tum bhi

ग़ज़ल

पलकों पर हसरत की घटाएँ हम भी पागल तुम भी

महबूब ख़िज़ां

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पलकों पर हसरत की घटाएँ हम भी पागल तुम भी
जी न सकें और मरते जाएँ हम भी पागल तुम भी

दोनों अपनी आन के सच्चे दोनों अक़्ल के अंधे
हाथ बढ़ाएँ फिर हट जाएँ हम भी पागल तुम भी

ख़्वाब में जैसे जान छुड़ा कर भाग न सकने वाले
भागें और वहीं रह जाएँ हम भी पागल तुम भी

संदल फूले जंगल जागे नाग फिरीं मतवाले
नंगे पाँव चलें घबराएँ हम भी पागल तुम भी