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पल पल काँटा सा चुभता था | शाही शायरी
pal pal kanTa sa chubhta tha

ग़ज़ल

पल पल काँटा सा चुभता था

नासिर काज़मी

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पल पल काँटा सा चुभता था
ये मिलना भी क्या मिलना था

ये काँटे और तेरा दामन
मैं अपना दुख भूल गया था

कितनी बातें की थीं लेकिन
एक बात से जी डरता था

तेरे हाथ की चाय तो पी थी
दिल का रंज तो दिल में रहा था

किसी पुराने वहम ने शायद
तुझ को फिर बेचैन किया था

मैं भी मुसाफ़िर तुझ को भी जल्दी
गाड़ी का भी वक़्त हुआ था

इक उजड़े से स्टेशन पर
तू ने मुझ को छोड़ दिया था