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पकड़ी किसी से जावे नसीम और सबा बंधे | शाही शायरी
pakDi kisi se jawe nasim aur saba bandhe

ग़ज़ल

पकड़ी किसी से जावे नसीम और सबा बंधे

इंशा अल्लाह ख़ान

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पकड़ी किसी से जावे नसीम और सबा बंधे
मौला करे कुछ अपनी भी अब तो हवा बंधे

आशिक़ को बोग़-बंद में बाँधा है उस ने यूँ
ता हो के दस्त-ए-बुक़चा में जैसे क़बा बंधे

यूँ दूद आह का मिरी गुम्बद बँधा है याँ
छत जैसे अब्र-ए-तीरा की तहतस्समा बंधे

टुक आलम ऐ जुनूँ तू दिखा वो कि जिस से साफ़
लाहूत का समाँ मिरी आँखों में आ बंधे

सरमा घुला के आँखों में निकला न कीजिए
ऐसा न हो कि आप पे कुछ तूतिया बंधे

क़ुदरत ख़ुदा के देखो कि चोरी तो हम करें
और उल्टे दस्त-गीर हो दुज़द-ए-हिना बंधे

अलझेड़े में फँसे थे तिरी ज़ुल्फ़ के सो वो
उल्टे टँगे असीर हुए बारहा बंधे

'इंशा' सद-आफ़रीं तिरे ज़ेहन-ए-सलीम को
मज़मूँ ज़ियादा इस से भला और क्या बंधे