पैमान-ए-वफ़ा-ए-यार हैं हम
यानी ना-पाएदार हैं हम
ख़ाक-ए-सर-ए-रहगुज़ार हैं हम
पामाल-ए-जफ़ा-ए-यार हैं हम
नौमीदी ओ यास चार सू है
उफ़ किस के उम्मीद-वार हैं हम
किस दुश्मन-ए-जाँ की आरज़ू है
जो मौत के ख़्वास्त-गार हैं हम
तू हम से है बद-गुमाँ सद अफ़्सोस
तेरे ही तो जाँ-निसार हैं हम
'वहशत' ख़ामोश जल रहे हैं
गोया शम-ए-मज़ार हैं हम
ग़ज़ल
पैमान-ए-वफ़ा-ए-यार हैं हम
वहशत रज़ा अली कलकत्वी