पहले तो जस्ता जस्ता भूल गया
और फिर सारा रस्ता भूल गया
बुन रहा था मैं जाल ख़्वाबों का
बाहर आने का रस्ता भूल गया
शहर-ए-दिल से चला गया इक शख़्स
आईना इक शिकस्ता भूल गया
हाँ ख़रीदा था इश्क़ का सौदा
वो था महँगा कि सस्ता भूल गया
मकतब-ए-इश्क़ आ गया हूँ मैं
दिल-ए-नादाँ का बस्ता भूल गया
हुस्न की बारगाह में ऐ 'सईद'
तू भी था दस्त-बस्ता भूल गया

ग़ज़ल
पहले तो जस्ता जस्ता भूल गया
सईद नक़वी