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पहले ख़ुद को जलाएगा सूरज | शाही शायरी
pahle KHud ko jalaega suraj

ग़ज़ल

पहले ख़ुद को जलाएगा सूरज

नुद्रत नवाज़

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पहले ख़ुद को जलाएगा सूरज
फिर कहीं जगमगाएगा सूरज

लम्हा लम्हा करेगा एक जगह
और सदियाँ बनाएगा सूरज

मेरे आँसू न पी सका अब तक
यूँ तो दरिया सिखाएगा सूरज

बहते पानी में झाँक लेने दो
ख़ुद-बख़ुद डगमगाए सूरज

ज़ुल्फ़ लहरा के मत चलो दिन में
रास्ता भूल जाएगा सूरज

चल के नुदरत-'नवाज़' के घर तक
जाने किस रोज़ आएगा सूरज