पहले ख़ुद को जलाएगा सूरज
फिर कहीं जगमगाएगा सूरज
लम्हा लम्हा करेगा एक जगह
और सदियाँ बनाएगा सूरज
मेरे आँसू न पी सका अब तक
यूँ तो दरिया सिखाएगा सूरज
बहते पानी में झाँक लेने दो
ख़ुद-बख़ुद डगमगाए सूरज
ज़ुल्फ़ लहरा के मत चलो दिन में
रास्ता भूल जाएगा सूरज
चल के नुदरत-'नवाज़' के घर तक
जाने किस रोज़ आएगा सूरज
ग़ज़ल
पहले ख़ुद को जलाएगा सूरज
नुद्रत नवाज़