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पहचाने तू हर-दम वही हर आन वही है | शाही शायरी
pahchane tu har-dam wahi har aan wahi hai

ग़ज़ल

पहचाने तू हर-दम वही हर आन वही है

वलीउल्लाह मुहिब

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पहचाने तू हर-दम वही हर आन वही है
जानाँ वही ऐ जान वही जान वही है

आसाइश-ए-तन राहत-ए-जाँ ताज़ा किए रूह
वल्लाहो-मअ'ल-आन-कमा-कान वही है

का'बे में वही ख़ुद है वही दैर में है आप
हिन्दू कहो या उस को मुसलमान वही है

बख़्शे है वही ख़ाक को दीन-ओ-दिल-ओ-ईमां
ग़ारत-गर-ए-दीन-ओ-दिल-ओ-ईमान वही है

पर्दा है तअ'य्युन का वही आँखों के आगे
बे-पर्दा नुमाइंदा-ए-इरफ़ान वही है

हम याद करें किस को फ़रामोश हों किस से
है याद भी हर-दम वही निस्यान वही है

सर तेग़ तले उस के तो धर दीजिए क्यूँकर
क़ातिल जो वही है तो निगहबान वही है

सूरत में है ज़ाहिर वही मा'नी में है बातिन
हर शक्ल में पैदा वही पिन्हान वही है

न माया-ए-दुनिया है न कुछ दीन का अस्बाब
मुझ बे-सर-ओ-पा का सर-ओ-सामान वही है

दिल है सो घर उस का है मकाँ जान-आे-तन उस का
याँ साहब-ए-ख़ाना वही मेहमान वही है

बे-दर्द वही है वही है दर्द व-लेकिन
अपने तो 'मुहिब' दर्द का दरमान वही है