पड़ गई दिल में तिरे तशरीफ़ फ़रमाने में धूम
बाग़ में मचती है जैसे फ़स्ल-ए-गुल आने में धूम
तेरी आँखों ने नशे में इस तरह मारा है जोश
डालते हैं जिस तरह बद-मस्त मय-ख़ाने में धूम
चाँद के परतव से जूँ पानी में हो जल्वे का हश्र
तेरे मुँह के अक्स ने डाली है पैमाने में धूम
अब्र जैसे मस्त को शोरिश में लावे दिल के बीच
मच गई इक बार उन बालों के खुल जाने में धूम
बू-ए-मय आती है मुँह से जूँ कली से बू-ए-गुल
क्यूँ 'यक़ीं' से जान करते हो मुकर जाने में धूम
ग़ज़ल
पड़ गई दिल में तिरे तशरीफ़ फ़रमाने में धूम
इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन