पाँव पत्तों पे धीरे से धरता हुआ
वो गुज़र जाएगा यूँ ही डरता हुआ
बोझ सूरज का सर पर उठाने को है
एक साया नदी में उतरता हुआ
शाम साहिल पे गुम-सुम सी बैठी हुई
और दरिया में सोना बिखरता हुआ
तेरे आने की उस को ख़बर किस ने दी
एक आशुफ़्ता-सर है सँवरता हुआ
देखता रह गया अपनी परछाइयाँ
वक़्त गुज़रा है कितना ठहरता हुआ
ग़ज़ल
पाँव पत्तों पे धीरे से धरता हुआ
आदिल रज़ा मंसूरी