EN اردو
पाबंदी-ए-हुदूद से बेगाना चाहिए | शाही शायरी
pabandi-e-hudud se begana chahiye

ग़ज़ल

पाबंदी-ए-हुदूद से बेगाना चाहिए

ताबिश देहलवी

;

पाबंदी-ए-हुदूद से बेगाना चाहिए
दामाँ ब-क़द्र-ए-वहशत-ए-दीवाना चाहिए

होता है फ़ाश गिर्या-ए-पैहम से राज़-ए-इश्क़
ऐ शम्अ' राज़-दारी-ए-परवाना चाहिए

ज़ौक़-ए-उबूदियत है तअ'य्युन से बे-नियाज़
हम-सूरत-ए-जबीं दर-ए-जानाना चाहिए

बज़्म-ए-नियाज़-ए-इश्क़ में हूँ आश्ना-ए-होश
बे-पर्दा आज फिर रुख़-ए-जानाना चाहिए

ऐ ज़ौक़-ए-इज्ज़ जल्वा-गह-ए-यार है क़रीब
पा-ए-तलब में लग़्ज़िश-ए-मस्ताना चाहिए

'ताबिश' ग़म-ए-हयात ही वज्ह-ए-नशात है
हर एक दाग़ सूरत-ए-पैमाना चाहिए