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नुमू के फ़ैज़ से रंग-ए-चमन निखर सा गया | शाही शायरी
numu ke faiz se rang-e-chaman nikhar sa gaya

ग़ज़ल

नुमू के फ़ैज़ से रंग-ए-चमन निखर सा गया

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

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नुमू के फ़ैज़ से रंग-ए-चमन निखर सा गया
मगर बहार में दिल शोरिशों से डर सा गया

जफ़ा-ए-दोस्त बहुत साज़गार आई है
ख़राब हो कि ये दिल और कुछ सँवर सा गया

न जाने बाद-ए-सबा क्या पयाम लाई थी
कि फूल हँस तो दिया फिर भी मुँह उतर सा गया

ब-फ़ैज़-शौक़ ये दिन देखना नसीब हुआ
कि सर से दर्द का तूफ़ाँ गुज़र गुज़र सा गया

तिलिस्म-ए-बज़्म फुसून-ए-जमाल सेहर-ए-शबाब
निगाह-ए-शौक़ का दामन गुलों से भर सा गया

वो शाम हो गई मंसूब उन की याद के नाम
चराग़ जल सा गया दाग़-ए-दिल उभर सा गया

वो एक शोख़ का अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू 'ताबाँ'
जिगर में तंज़ का नश्तर उतर उतर सा गया