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नुक्ता-चीनी है और आरास्तन-ए-दामन है | शाही शायरी
nukta-chini hai aur aarastan-e-daman hai

ग़ज़ल

नुक्ता-चीनी है और आरास्तन-ए-दामन है

तनवीर देहलवी

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नुक्ता-चीनी है और आरास्तन-ए-दामन है
जामा-ए-यार में अन्क़ा शिकन-ए-दामन है

दामन-ए-गुल से भी हल्का वज़न-ए-दामन है
इस पे भी बार उसे एक एक शिकन-ए-दामन है

किसी बेकस के लहू के हैं ये छींटे क़ातिल
गुल-ए-हसरत से जो फूला चमन-ए-दामन है

उस का ये कहना कि बस बस मिरा दामन छोड़ो
नक़्श सीने पे वो दिलकश सुख़न-ए-दामन है

तुम ने पूछा गुल-ए-रुख़्सार है क्या दामन से
आज कुछ और बहार-ए-चमन-ए-दामन है

गर्मी-ए-हुस्न शरर-रेज़ है मुँह इस से न ढाँक
मुझ को ऐ जाँ ख़तर-ए-सोख़्तन-ए-दामन है

मुँह पे है उस के जो दामान-ए-क़बा-ए-शबनम
बन गया आईना-ए-साफ़ तन-ए-दामन है

चख चलो सब से उन आँखों की क़सम ऐ 'तनवीर'
ऐन तस्लीम-ए-सर-अनदाख़तन-ए-दामन है