निस्बत रहे तुम से सदा हज़रत निज़ामुद्दीन-जी
माँगूँ मैं क्या इस के सिवा हज़रत निज़ामुद्दीन-जी
आँखों पे यूँ छाए हो तुम हर जा नज़र आए हो तुम
कैसा जुनूँ मुझ को हुआ हज़रत निज़ामुद्दीन-जी
हाथों से तुम ने जो किया रौशन वफ़ा का इक दिया
आँधी की ज़द में वो जला हज़रत निज़ामुद्दीन-जी
लेते थे अल्लाह नाम जो जपते थे दिल में राम जो
तुम ने किया सब का भला हज़रत निज़ामुद्दीन-जी
'ख़ुसरव' की आँखों से कभी देखे अगर तुम को कोई
अहवाल होगा उस का क्या हज़रत निज़ामुद्दीन-जी
ग़ज़ल
निस्बत रहे तुम से सदा हज़रत निज़ामुद्दीन-जी
शहरयार