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नीम-जाँ हूँ ज़िंदगी दूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है | शाही शायरी
nim-jaan hun zindagi dud-e-charagh-e-kushta hai

ग़ज़ल

नीम-जाँ हूँ ज़िंदगी दूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है

मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता

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नीम-जाँ हूँ ज़िंदगी दूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है
मेरी हस्ती सूरत-ए-बूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है

गो हूँ मुफ़लिस पर हूँ अपनी तीरा-बख़्ती से नमी
मेरे घर में दौलत-ए-सूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है

हो नहीं सकता सियह-कारी से मैं रौशन-ज़मीर
दिल मिरा इक ज़र्फ़ मासूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है

देख कर परवानों के पर सुब्ह को साबित हुआ
ये बहार-ए-गुलशन जूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है

ऐ 'शगुफ़्ता' मुझ को पीरी में ये मिस्रा याद है
बूद अपनी वहम-ए-नाबूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है