नज़दीक सी शय साया-ए-हाइल से बहुत दूर 
मंज़िल है शनासाई-ए-मंज़िल से बहुत दूर 
दुश्वार सही दूर नहीं नुक्ता-रसी से 
लेकिन है ग़लत-रस्मी-ए-राहिल से बहुत दूर 
ये ऐन ख़ुदी इश्क़ के आसार में है ग़म 
पहलू से है कम दूर मुक़ाबिल से बहुत दूर 
हर सहल-तलब से तो है बरगश्ता-बदीहा 
हर साइल-ए-कामिल के भी हासिल से बहुत दूर 
क़ुर्बानियाँ कुछ रख दे गिरो ऐसी उठे गूँज 
गिर-पड़ के जो पहुँचे कोई मुश्किल से बहुत दूर 
तारी असर-ए-सदमा कभी नश्शा-ए-तुंदी 
ख़ुद-संजी-ए-हक़-सीरत-ए-ज़ाइल से बहुत दूर 
मश्शातगी-ए-शाना बहुत सिलसिला-ए-जुम्बा 
तह-दारी-ए-सद-ज़ुल्फ़-ए-अवाइल से बहुत दूर 
इक सिलसिला-ए-मौजा-ए-ज़ंजीर-ए-शिकन सा 
घुसते हुए ज़िंदाँ से सलासिल से बहुत दूर 
ग़ल्तीदा-ओ-पेचीदा-ओ-आशुफ़्ता सी इक मौज 
साहिल को लिए ज़द में है साहिल से बहुत दूर 
सद-ज़ाविया मेहराब-ए-तग़य्युर कम-ओ-अफ़्ज़ूँ 
इदराक के बाज़ू-ए-हमाइल से बहुत दूर 
यूँ जैसे कि हर अस्र-ए-रवाँ के मुतवाज़ी 
मौसम की हर इक शक़ के मुमासिल से बहुत दूर 
पिन्हाँ अभी कम-पोश भी मुबहम अभी हर बार 
पायाबी-ए-मिज़राब रग-ए-दिल से बहुत दूर 
लाहूत की इक लहर सू-ए-कर्ब-ए-दिल-ए-ख़ाक 
लाया कोई जज़्बा किसी महफ़िल से बहुत दूर 
आशोब-ए-क़दह जस्ता सू-ए-गश्त पियादा 
वामाँदगी-ए-तिश्ना-ओ-सर-जोशी-ए-बादा
        ग़ज़ल
नज़दीक सी शय साया-ए-हाइल से बहुत दूर
मीम हसन लतीफ़ी

