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नज़र नज़र से मिलाना कोई मज़ाक़ नहीं | शाही शायरी
nazar nazar se milana koi mazaq nahin

ग़ज़ल

नज़र नज़र से मिलाना कोई मज़ाक़ नहीं

ज़िया फ़तेहाबादी

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नज़र नज़र से मिलाना कोई मज़ाक़ नहीं
मिला के आँख चुराना कोई मज़ाक़ नहीं

पहाड़ काट तो सकता है तेशा-ए-फ़रहाद
पहाड़ सर पे उठाना कोई मज़ाक़ नहीं

उड़ानें भरते रहें लाख ताइरान-ए-ख़याल
सितारे तोड़ के लाना कोई मज़ाक़ नहीं

लहू लहू है जिगर दाग़ दाग़ है सीना
ये दो दिलों का फ़साना कोई मज़ाक़ नहीं

हवाएँ आज भी आवारा ओ परेशाँ हैं
महक गुलों की उड़ाना कोई मज़ाक़ नहीं

हज़ारों करवटें लेते हैं आसमान ओ ज़मीं
गिरे हुओं को उठाना कोई मज़ाक़ नहीं

ये और बात बुलाएँ न अपनी महफ़िल में
मगर 'ज़िया' को भुलाना कोई मज़ाक़ नहीं