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नज़र की धूप में आने से पहले | शाही शायरी
nazar ki dhup mein aane se pahle

ग़ज़ल

नज़र की धूप में आने से पहले

सरफ़राज़ ज़ाहिद

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नज़र की धूप में आने से पहले
गुलाबी था वो सँवलाने से पहले

सुना है कोई दीवाना यहाँ पर
रहा करता था वीराने से पहले

मोहब्बत आम सा इक वाक़िआ' था
हमारे साथ पेश आने से पहले

खिला करते थे ख़्वाबों में किसी के
तिरे तकिए पे मुरझाने से पहले